शुक्रवार, 4 मई 2018

टेलीविजन न्यूज

भारतीय पौराणिक ग्रंथ महाभारत की कथा में संजय द्वारा धृतराष्ट्र के पास बैठे-बैठे महाभारत के युद्व क्षेत्र का आंखों देखा हाल सुनाने का उल्लेख भले ही मिलता हो मगर आधुनिक टेलीविजन के इतिहास को अभी 100 वर्ष भी पूरे नहीं हुए हैं। सन् 1900 में पहली बार रूसी वैज्ञानिक कोंस्तातिन पेस्र्की ने सबसे पहली बार टेलीविजन शब्द का इस्तेमाल चित्रों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजने वाले एक प्रारम्भिक यंत्र के लिए किया था। 1922 के आस-पास पहली बार टेलीविजन का प्रारम्भिक सार्वजनिक प्रदर्शन हुआ था। 1926 में इंग्लैण्ड के जॉन बेयर्ड और अमेरिका के चाल्र्स फ्रांसिस जेनकिंस ने मैकेनिकल टेलीविजन के जरिए चित्रों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजने का सफल प्रयोग किया।
पहले इलेक्ट्रानिक टेलीविजन का आविष्कार रूसी मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक ब्लादीमिर ज्योर्खिन ने 1927 में किया। हालांकि इसकी दावेदारी जापान, रूस, जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन भी करते रहे हैं कि पहला इलेक्ट्रानिक टेलीविजन उनके देश में बनाया गया। बहरहाल 1939 में पहली बार अमेरिकी रेडियो प्रसारण कंपनी आरसीए ने न्यूयार्क विश्व मेले के उद्घाटन और राष्ट्रपति रूजवैल्ट के भाषण का सीधा टेलीविजन प्रसारण किया। बीबीसी रेडियो 1930 में और बीवीसी टेलीविजन 1932 में स्थापित हो गया था। इसने 1936 के आस पास कुछ टीवी कार्यक्रम बनाए भी। इसी बीच दूसरा विश्वयुद्व छिड़ जाने से टीवी के विकास की रफ्तार कम हो गई।
1 जुलाई 1941 को अमेरिकी कंपनी कोलम्बिया ब्रॉडकास्टिंग सर्विस ने न्यूयार्क टेलीविजन स्टेशन से रोजाना 15 मिनट के न्यूज बुलेटिन की शुरूआत की। यह प्रसारण सीमित दर्शकों के लिए था। विश्वयुद्व की समाप्ति के बाद तकनीकी विकास के दौर में 1946 में रंगीन टेलीविजन के आविष्कार ने टीवी न्यूज के विकास में एक बड़ी छलांग का काम किया। 50 के दशक में अमेरिकी प्रसारण कंपनी एनबीसी और एनसीबीएस ने रंगीन न्यूज बुलेटिन शुरू किए तो बीबीसी टीवी ने भी दैनिक न्यूज बुलेटिन शुरू कर दिए। 1980 में टेड टर्नर ने सीएनएन के 24 घंटे के न्यूज चैनल की शुरूआत की। 24 घंटे का यह न्यूज चैनल जल्द ही लोकप्रिय हो गया और 1986 में स्पेस शटल चैलेजंर के दुघर्टनाग्रस्त होने के सजीव प्रसारण ने इसे बहुत ख्याति प्रदान की। लगभग 10 वर्ष बाद 1989 में ब्रिटेन में भी रूपर्ट मर्डोक ने लन्दन से स्काई न्यूज के नाम से 24 घंटे का न्यूज चैनल शुरू किया जबकि टीवी न्यूज में काफी नाम कमा चुके बीबीसी को 24 घंटे का न्यूज चैनल शुरू करने के लिए 1997 तक इन्तजार करना पड़ा। आज विश्व के प्रायः हर देश में एक से अधिक न्यूज चैनल हैं। पश्चिमी टीवी न्यूज चैनलों का एकाधिकार और दबदबा भी अब कम होता जा रहा है और अल जजीरा जैसे चैनल टीवी खबरों की दुनिया में पश्चिमी एकाधिकार को कड़ी चुनौती देने लगे हैं।




भारत में टेलीविजन का आगमन 1959 में हो गया था। प्रारम्भ में यह माना गया था कि भारत जैसे गरीब देश में इस महंगी टैक्नोलॉजी वाले माध्यम का कोई भविष्य नहीं है। लेकिन धीरे-धीरे यह धारणा खुद ब खुद बदलती चली गई। 1964 में दूरदर्शन पर पहली बार न्यूज की शुरूआत हुई। शुरू में यह रेडियो यानी आकाशवाणी के अधीन था। इसका असर दूरदर्शन के समाचारों पर भी दिखाई देता था। लेकिन 1982 में दिल्ली एशियाई खेलों के आयोजन, एशियाड के साथ ही देश में रंगीन टेलीविजन की शुरूआत हो गई और यहीं से दूरदर्शन के समाचारों में एक नए युग की शुरूआत भी हुई। इसी दौर में हिंदी के अलावा उर्दू, संस्कृत और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के न्यूज बुलेटिन भी शुरू हुए। संसदीय चुनावों के कवरेज ने दूरदर्शन न्यूज को काफी लोकप्रिय बनाया मगर उसे अभी निजी चैनलों की चुनौती नहीं मिली थी।
भारतीय टेलीविजन में निजी क्षेत्र का खबरों की दुनिया में प्रवेश 1994 में हुआ। पहले जैन टीवी और फिर जी टीवी ने न्यूज बुलेटिन शुरू किए। पहला चौबीस घंटे का न्यूज चैनल भी जैन टीवी का ही था जो अधिक समय तक चल नहीं पाया। जी न्यूज ने 1 फरवरी 1999 को चौबीस घंटे का न्यूज चैनल शुरू किया जो आज भी चल रहा है। इसी बीच बीओआई ने भी न्यूज चैनल शुरू किया, मगर खर्चीले प्रबन्धन ने उसे भी जल्द ही डुबा दिया। लेकिन भारत में टीवी न्यूज को सही मायनों में स्थापित करने का श्रेय अगर किसी को दिया जा सकता है तो वो है ‘आज तक’। यह 17 जुलाई 1995 को आज तक 20 मिनट के न्यूज बुलेटिन के तौर पर दूरदर्शन में शुरू हुआ था। सुरेन्द्र प्रताप सिंह के कुशल संपादन व प्रस्तुतिकरण ने जल्द ही आजतक को सर्वश्रेष्ठ और विश्वसनीय समाचार बुलेटिन बना दिया। इसकी सफलता की नींव पर 31 दिसम्बर 2000 को आज तक के 24 घंटे के निजी न्यूज चैनल की शुरूआत हुई जो अब भी सर्वश्रेष्ठ बना हुआ है।
आज देश में 100 से अधिक निजी न्यूज चैनल हैं और सब अपनी-अपनी विशिष्टताओं के साथ खबरों की दुनिया में अपना प्रदर्शन कर रहे हैं। तकनीक के सस्ते होते जाने से भी टीवी न्यूज का विस्तार तेजी से हुआ है। पहले न्यूज चैनल शुरू करने में 50 करोड़ से अधिक खर्च आता था तो आज महज कुछ करोड़ रूपयों में न्यूज चैनल शुरू हो जाता है। मगर तकनीक सस्ती होने के साथ ही टीवी न्यूज में भी सस्तापन आने लगा है, गम्भीरता और लोक जिम्मेदारी की भावना कम होने से साथ-साथ सनसनी और नाटकीयता बढ़ने लगी है। टीवी न्यूज के भविष्य के लिए यह शुभ संकेत नही कहे जा सकते, मगर विशेषज्ञ मानते हैं कि यह दौर जल्द ही खत्म हो जाएगा।
संदर्भ 

https://www.navinsamachar.com/communication-news-writing/#.Wuy05qSFPIU



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