शुक्रवार, 4 मई 2018

ब्रांड प्रबंधन


ब्रांड प्रबंधन को समझने से पूर्व समझें कि ब्रांड क्या है।
ब्रांड किसी कंपनी द्वारा अपने उत्पादों को दी गई वह पहचान है, जो उत्पाद के नाम, लोगो और ट्रेडमार्क आदि के रूप में प्रदर्शित की जाती है।
ब्रांडों का ही कमाल है कि आज कई ऐसी वस्तुएें भी हैं जो अपनी वास्तविक पहचान या नाम के बजाय अपने ब्रांड के नाम से ही जानी जाती हैं।
जैसे: ताले को हरीसन का ताला, अल्मारी को गोदरेज की अल्मारी, वनस्पति घी को डालडा, डिटरजेंट पावडर को सर्फ, टूथ पेस्ट को कोलगेट को उनकी कंपनी के नाम से जाना जाता है।
कुछ ऐसे उत्पाद भी हैं, जिनकी कंपनियों के नाम ही उस उत्पाद के नाम के रूप में स्थापित हो गये हैं, जैसे फोटो स्टेट की जीरोक्स मशीन, टुल्लू पंप व जेसीबी मशीन। गौरतलब है कि जीरोक्स, टुल्लू व जेसीबी कंपनियों के नाम हैं, न कि उत्पाद के लेकिन उत्पाद के नाम के रूप में यही प्रचलन हैं।
ब्रांड का लाभ यह है कि इसके जरिये सामान्य वस्तु को भी असामान्य कीमत पर बेचा जा सकता है।
ब्रांड से एक ओर जहां उच्च गुणवत्ता की उम्मीद की जाती है, तो दूसरी ओर उसके उपभोक्ताओं को किसी ब्रांड वाले उत्पाद के प्रयोग से आम लोगों से हटकर दिखने की आत्म संतुष्टि भी मिलती है।
ब्रांड को विकसित करने में गारंटी, वारंटी जैसी बिक्री बाद सेवाओं की काफी बड़ी भूमिका रहती है, जिसके जरिये उत्पाद के प्रति अपने प्रयोगकर्ताओं, ग्राहकों के मन में अपनत्व, विश्वास का भाव जागृत किया जाता है। और कोई उत्पाद यदि इन तरीकों से ब्रांड के रूप में स्थापित हो जाता है तो फिर ब्रांड की बडी धनराशि में खरीद-बिक्री भी की जाती है।

क्या है ब्रांड :

ब्रांड उत्पाद की कंपनी के नाम व ‘लोगो’का सम्मिश्रण है, जिसकी अपनी छवि से उपभोक्ताओं के बीच उस उत्पाद का जुड़ाव उत्पन्न होता है। ब्रांड की पहचान कंपनी के लोगो व मोनोग्राम से होती है। जैसे एडीडास, नाइकी, बाटा, टाटा आदि ब्रांड के लोगो व मोनोग्राम एक खास तरीके के चिन्ह के साथ लिखे जाते हैं।
आने वाला समय ब्रांड का:
बीते दौर में कुछ गिनी-चुनी चीजें ही ब्रांड के साथ मिलती थीं, जैसे वाहन, गाड़ियां, अल्मारी, टूथपेस्ट, साबुन, तेल, जूते व भोजन सामग्री में चाय।
लेकिन बदलते दौर में कपड़ों के साथ ही सोना, हीरा जैसे महंगे आभूषणों से लेकर भोजन सामग्री में चावल, आटा, दाल, तेल, नमक, चीनी व सब्जी आदि भी ब्रांड के साथ बेचने की प्रक्रिया शुरु हो गई है। और वह दिन दूर नहीं जब अंडे, मांस व फल जैसे उत्पाद भी ब्रांड के नाम से बेचे जाएेंगे।

ब्रांड विकसित करने की प्रक्रिया:

1. गुणवत्ता :
ब्रांड का सर्वप्रमुख गुण उसकी गुणवत्ता है। उपभोक्ता किसी उत्पाद को उसका ब्रांड देखकर सबसे पहले इसलिये खरीदते हैं कि वह उस उत्पाद की गुणवत्ता के प्रति अपनी ओर से बिना किसी जांच किये संतुष्ट महसूस करते हैं। उन्हें पता होता है कि अमुख ब्रांड के उत्पाद की गुणवत्ता हर बार ठीक वैसी ही होगी, जैसी उन्होंने पिछली बार उस उत्पाद में पाई थी।
उदाहरण के लिये यदि उपभोक्ता किसी ब्रांड के सेब या आलू खरीदते हैं तो हमें हर बार समान आकार व स्वाद के सेब या आलू ही प्राप्त होंगे।
लिहाजा, ब्रांड विकसित करने के लिये सबसे पहले उत्पाद की गुणवत्ता तय की जाती है। यहां ध्यान देने वाली बात यह भी है कि गुणवत्ता से तात्पर्य उत्पाद की गुणवत्ता सर्वश्रेष्ठ होना नहीं वरन तय मानकों के अनुसार होना है।
2. श्रेष्ठ होने की आत्म संतुष्टि :
किसी ब्रांड के उत्पाद को उपभोक्ता इसलिये भी खरीदते हैं कि उसके प्रयोग से वह सर्वश्रेष्ठ उत्पाद का प्रयोग करने का दंभ पालता है और दूसरों को ऐसा प्रदर्शित कर आत्म संतुष्टि प्राप्त करता है।
इसी भाव के कारण अक्सर धनी वर्ग के उपभोक्ता खासकर वस्त्रों, जूतों व गाड़ियों जैसे प्रदर्शन करने वाले उत्पादों को बड़े शोरूम से खरीदना पसंद करते हैं, और दोस्तों के बीच स्वयं की शेखी बघारते हुऐ उस शोरूम से उत्पाद को खरीदे जाने की बात बढ़-चढ़कर बताते हैं।
वहीं कई लोग जो ऐसे बड़े शोरूम से महंगे दामों में उत्पाद नहीं खरीद पाते वह उस ब्रांड के पुराने उत्पाद फड़ों से खरीदकर झूठी शेखी बघारने से भी गुरेज नहीं करते।
अर्थशास्त्र के सिद्धांतों में भी खासकर लक्जरी यानी विलासिता की वस्तुओं की कीमतों के निर्धारण को मांग व पूर्ति के सिद्धांत से अलग रखा गया है। ब्रांड के नाम पर सामान्यतया उत्पाद अपने वास्तविक दामों से कहीं अधिक दाम पर बेचे जाते हैं, और उपभोक्ता इन ऊंचे दामों को खुश होकर वहन करता है, वरन कई बार कम गुणवत्ता के उत्पादों को भी अधिक दामों में खरीदने से गुरेज नहीं करता।
3. विज्ञापन एवं प्रस्तुतीकरण:
विज्ञापन एवं प्रस्तुतीकरण की ब्रांड के निर्माण में निर्विवाद तौर पर बड़ी भूमिका होती है। विज्ञापन व प्रस्तुतीकरण दो तरह से ब्रांड की छवि के उपभोक्ताओं के मन में विस्तार व स्थापित करने में बड़ी भूमिका निभाते हैं।
पहला, विज्ञापन व प्रस्तुतीकरण से नये उपभोक्ता उत्पाद के प्रति आकर्षित होते हैं। दूसरे, उसे प्रयोग कर चुके उपभोक्ताओं में अपने पसंदीदा ब्रांड के विज्ञापनों को देखकर अन्य लोगों से कुछ अलग होने का भाव जागृत होता है।
4. गारंटी एवं वारंटी :
गारंटी एवं वारंटी खरीद बाद सेवाओं की श्रेणी में आते हैं। यदि किसी उत्पाद को खरीदे जाने के बाद भी कंपनी उसके सही कार्य करने की गारंटी देती है, और कोई कमी आने पर उसे दुरुस्त करने का प्रबंध करती है तो उपभोक्ता उस उत्पाद पर आंख मूँद कर विश्वास कर सकते हैं। यही विश्वास ब्रांड के प्रति उपभोक्ता के जुड़ाव को और मजबूत करता है।
कई बार उपभोक्ता एक ब्रांड को खरीदने के बाद दूसरे ब्रांड के उत्पाद में मौजूद गुणों का लाभ न ले पाने की कमी व निराशा महसूस करता है। गारंटी व वारंटी उसके इस भाव को कम करने तथा खरीदे गये ब्रांड के प्रति उसके प्रेम को बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाते हैं।
संदर्भ 
https://www.navinsamachar.com/communication-news-writing/#.Wuy05qSFPIU

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