शुक्रवार, 4 मई 2018

स्टिंग ऑपरेशन

 इन्‍वेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग का ही एक रूप स्टिंग ऑपरेशन है। टेलीविजन में स्टिंग ऑपरेशन, रिपोर्टिंग की सबसे आधुनिक तकनीक है और ये खबरों की सच्‍चाई से लोगों को रू-ब-रू कराने का सबसे प्रभावशाली जरिया भी है। ये वो माध्‍यम है जिसके जरिए समाज के सफेदपोश लोगों, बड़े नेताओं, अफसरों, सेलिब्रि‍टीज के काले चेहरे उजागर होते रहे हैं। स्टिंग ऑपरेशन में रिपोर्टर स्‍पाई या छिपे हुए कैमरे का इस्‍तेमाल करता है और टारगेट व्‍यक्ति को इसकी जानकारी नहीं होती कि वो, जो कुछ बोल या कर रहा है, वो सब गुपचुप कैमरे में कैद भी हो रहा है। कई तरह के स्‍पाई कैमरे बाजार मे मिलते हैं। इन्‍हें कलम, टाई से लेकर बटन तक में छिपाकर रिपोर्टर अपने साथ ले जा सकता है।
भारत में स्टिंग ऑपरेशन की शुरूआत तहलका नाम की एजेंसी ने की थी। इसने बीजेपी में चंदा के नाम पर लाखों रूपये लेने का भंडाफोड़ किया और पार्टी के अध्‍यक्ष बंगारू लक्ष्‍मण को पद छोड़ना पड़ा था। अलग-अलग न्‍यूज चैनलों में अब तक कई स्टिंग हो चुके हैं। इसमें आजतक का ‘ऑपरेशन दूर्योधन’, स्‍टार न्‍यूज का ‘ऑपरेशन चक्रव्‍यूह’, IBN7 का ‘ऑपरेशन माया’, एनडीटीवी का ‘ऑपरेशन बीएमडब्‍ल्‍यू’ खास माना जा सकता है।
‘ऑपरेशन दूर्योधन’ और ‘ऑपरेशन चक दे’, स्टिंग ऑपरेशन के सबसे अच्‍छे उदाहरण हैं। ऑपरेशन चक दे में रिपोर्टर ने इंडियन हॉकी फेडरेशन के अधिकारियों को पैसा लेकर खि‍लाडि़यों का चुनाव करते हुए पकड़ा था और इसका नतीजा ये निकला कि फेडरेशन के अध्‍यक्ष के.पी.एस. गिल और आरोपी अधिकारियों को पद से हटना पड़ा।
कोबरा पोस्‍ट और आजतक ने स्टिंग ‘ऑपरेशन दूर्योधन’ के जरिए संसद में सवाल पूछने के लिए सांसदों के घूस लेने का भंड़ाफोड़ कर देश की राजनीति में तहलका मचा दिया था। इस खबर के बाद संसद से ग्‍यारह सांसदों की सदस्‍यता भी जाती रही।
कोबरा पोस्‍ट और आजतक ने भले ही इस खबर को ब्रेक किया, लेकिन क्‍या आपने कभी सोचा है कि ये खबर रिपोर्टर के पास कैसे पहुंची होगी। निश्चिततौर पर इस खबर को बाहर लाने के लिए रिपोर्टर ने खुफिया तकनीक का असरदार इस्‍तेमाल किया। सबसे पहले सांसदों के निजी सचिवों या करीबी लोगों से उनके बारे में जानकारी इकट्ठा की। यह पता किया कि सवाल पूछने के लिए सांसद पैसा लेते हैं या नही। प्रारंभिक सूचना तो निजी सचिव या कर्मचारियों से मिल कई, लेकिन रिपोर्टर के सामने सबसे बड़ी चुनौती उसे साबित करने की थी। इसके लिए उसने स्‍पाई कैमरे का इस्‍तेमाल किया। उसने सबसे पहले सांसदों को लिखित सवाल दिए और स्‍पाई कैमरे के जरिए सवाल को पढ़कर रिकॉर्ड किया, ताकि साबित हो कि संसद में पूछा जाने वाला सवाल रिपोर्टर ने ही दिया है। फिर सवाल को संसद में भिजवाया।
इस काम के लिए सांसदों को इस तरह पैसे दिए कि लेन-देन स्‍पाई कैमरे में रिकॉर्ड हो जाए। फिर रिपोर्टर ने संसद में सवाल का जवाब आने तक इंतजार किया। सांसद को सवाल देने, उसे संसद में सवाल पूछने के लिए पैसा देने और उसका जवाब आने तक एक सर्कल पूरा हुआ। रिपोर्टर को इस काम में सात-आठ महीने लगे और लोगों तक इस खबर को पहुंचाने के लिए रिपोर्टर को तब तक इंतजार करना पड़ा।
इन्‍वेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग या स्टिंग ऑपरेशन में रिपोर्टर को जासूस की तरह काम करना पड़ता है। आमतौर पर ये नहीं बताता कि वो रिपोर्टर है, बल्कि वा जिस खबर को कवर कर रहा होता है, उससे जुड़ी किसी काल्‍पनिक संस्‍था का प्रतिनिधि बन जाता है। ‘ऑपरेशन दुर्योधन’ के रिपोर्टर एक काल्‍पनिक व्‍यापार संगठन के प्रतिनिधि बनकर सांसदों से मिले, तो ‘ऑपरेशन चक दे’ के रिपोर्टर एक काल्‍पनिक खेल संगठन के प्रतिनिधि बन गए।
टीवी न्‍यूज में स्टिंग ऑपरेशन शुरू से ही विवाद में रहा है और इसकी विश्‍वसनीयता पर सवाल उठते रहे हैं। 2007 में एक चैनल ने दिल्‍ली में एक स्‍कूल टीचर का स्टिंग ऑपरेशन दिखाया था, जिसकी विश्‍वसनीयता को लेकर खासा बवाल हुआ। इस घटना के बाद सभी टीवी चैनलों ने स्टिंग ऑपरेशन के लिए अपने नियम कड़े कर दिए। बड़े चैनलों में स्टिंग ऑपरेशन के लिए अब एडिटर की इजाजत जरूरी है। कई चैनलों ने तो स्टिंग ऑपरेशन के लिए बाकायदा सर्कुलर जारी कर गाइड लाइन तय कर दी है और जूनियर रिपोर्टरों से स्टिंग ऑपरेशन कराने या उन्‍हें स्‍पाई कैमरा इस्‍तेमाल करने की मनाही कर दी गई है।
आशुतोष के मुताबिक स्टिंग ऑपरेशन खबर करने का एक असरदार तरीका है और उतना ही जरूरी है, जितना खोजी पत्रकारिता के दूसरे तरीके। लेकिन इसका इस्‍तेमाल तभी होना चाहिए, जब आप इस नतीजे पर पहुंच जाएं कि एक खास खबर को कवर करने के लिए बाकी सभी तरीकों से काम नहीं बनेगा।
उनका ये भी कहना है कि स्टिंग ऑपरेशन में सावधानी बरतने की काफी जरूरत होती है। रिपोर्टर पहले ये सुनिश्चित कर ले, कि वो जिस खबर को करने जा रहा है, वो खबर सही है। वो देख ले कि खुफिया कैमरा और दूसरे सभी सामान (Equipments) दुरूस्‍त हैं। क्‍योंकि स्टिंग ऑपरेशन में दूसरा मौका मिलने की संभावना ज्‍यादा नही होती है। किसी भी नए रिपोर्टर के भरोसे स्टिंग ऑपरेशन को अंजाम देना खतरे से खाली नही। स्टिंग ऑपरेशन किसी वरिष्‍ठ पत्रकार की देखरेख में पूरा किया जाना चाहिए।
संदीप चौधरी कहते हैं कि देश, समाज के बड़े हित से जुड़ी खबरों के लिए ही स्टिंग ऑपरेशन किया जाना चाहिए। आम खबरों के लिए स्टिंग ऑपरेशन का इस्‍तेमाल सही नहीं है।
निजी चैनलों के संगठन, न्‍यूज ब्रॉडकास्‍टर्स एसोसिएशन (एनबीए) के स्टिंग ऑपरेशन के लिए गाइडलाइन जारी की है। एनबीए के मुताबिक :
1- स्टिंग ऑपरेशन जनहित में केवल तभी किए जाने चाहिए, जब जरूरी सूचना को हासिल करने के लिए कोई दूसरा रास्‍ता नहीं हो और यह कोई गैरकानूनी तरीका अपनाये बगैर, किसी को प्रलोभन दिे बगैर किया जाना चाहिए। इस दौरान निजता के वैधानिक अधिकारों का ख्‍याल रखा जाना चाहिए।
2- ब्रॉडकास्‍टर्स को केवल तभी स्टिंग ऑपरेशन का सहारा लेना चाहिए, जब ऐसा करना संपादकीय दृष्टि से उचित हो और किसी गलत काम का, खास तौर पर सार्वजनिक जीवन से जुड़े व्‍यक्तियों की सच्‍चाई को उजागर करना हो।
3- कोई भी स्टिंग ऑपरेशन संपादकीय प्रमुख की सहमति लेकर ही किया जाना चाहिए और ब्रॉडकास्टिंग कंपनी के प्रबंध निदेशक या मुख्‍य कार्यकारी अ‍धिकारी को भी सभी स्टिंग ऑपरेशन के बारे में पूर्व सूचित किया जाना चाहिए।
4- स्टिंग ऑपरेशन किसी अपराध के संबंध में सबूत जुटाने के लिए किया जाना चाहिए, न कि किसी को लालच देकर अपराध करने के लिए उकसाया जाए।
संदर्भ 
http://www.newswriters.in/2015/12/15/types-of-television-reporting/

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