शुक्रवार, 20 अप्रैल 2018

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार घोषणा पत्र

अन्तर्राष्ट्रीय संगठन के संबंध में आयोजित संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों के सम्मेलन समाप्ति पर सैन फ्रैंसिस्को में 26 जून, 1945 को संयुक्त राष्ट्र के घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए गए और घोषणा पत्र 24 अक्टूबर, 1945 से लागू हुआ था। अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय का अध्यादेश इस घोषणा पत्र का अनिवार्य अंश है।
इस घोषणापत्र के अनुच्छेद 23, 27 और 61, 17 दिसम्बर, 1963 को महासभा द्वारा संशोधित किए गए और ये संशोधन 31 अगस्त, 1965 से लागू हुए। महासभा ने 20 दिसम्बर, 1971 को अनुच्छेद 61 में एक और संशोधन किया जो 24 दिसम्बर, 1973 से लागू हुआ। 20 दिसम्बर, 1965 को महासभा द्वारा अनुच्छेद 109 के संबंध में अंगीकार किया गया संशोधन 12 जून, 1968 से लागू किया गया।
अनुच्छेद 23 से संबंधित संशोधन के द्वारा सुरक्षा परिषद् के सदस्यों की संख्या ग्यारह से बढ़ाकर पन्द्रह कर दी गई। संशोधित अनुच्छेद 27 में यह व्यवस्था की गई कि क्रिया विधि सम्बन्धी मामलों के लिए सुरक्षा परिषद् का निर्णय नौ सदस्यों के समर्थक मतदान (जबकि पहले सात की व्यवस्था थी) पर आश्रित होगा औरअन्य सभी मामलों में नौ सदस्य (पहले यह संख्या सात थी) के स्वीकारात्मक मतदानों पर आश्रित होगा और इसमें सुरक्षा परिषद् के पाँच स्थायी सदस्यों का स्वीकारात्मकमतदान भी सम्मिलित होगा।
अनुच्छेद 61 के संशोधन के द्वारा (जो 31 अगस्त, 1965 को लागू हुआ) आर्थिक और सामाजिक परिषद् के सदस्यों की संख्या अट्ठारह से बढ़कर सत्ताईस हो गई थी। इस अनुच्छेद के बाद के संशोधन से, जो 24 सितम्बर, 1973 को लागू किया गया, परिषद् के सदस्यों की संख्या सत्ताईस से बढ़ाकर चौवन कर दी गई।
अनुच्छेद 109 में किए संशोधन का सम्बन्ध उसी अनुच्छेद के पहले पैरा से है। इसके अनुसार घोषणा पत्र का पुनरीक्षण करने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्यों का एक सामान्य सम्मेलन किया जा सकता है जिसकी तारीख और स्थान महासभा दो-तिहाई बहुमत से और सुरक्षा परिषद् अपने किन्ही नौ सदस्योंके (पहले यह संख्या सात थी) मतों से तय करेगी। जहाँ तक सुरक्षा परिषद् में किन्हीं सात सदस्यों के वोटों का संबंध है अनुच्छेद 109 के पैरा 3 को मूल रूप में रख लिया गया है। इसके महासभा के दसवें नियमित अधिवेशन में पुनर्विचार करने के लिए आयोजित किए जा सकने वाले सम्मेलन के विषय में विचार करने का उल्लेख है। 1955 में इस पैरा के अनुसार महासभा अपने दसवें नियमित अधिवेशन में, और सुरक्षा परिषद् भी, कार्यवाही कर चुकी है।
इसके तीस अनुच्छेदों पर कि वे आख़िर हैं क्याः

1. सब लोग गरिमा और अधिकार के मामले में स्वतंत्र और बराबर है.
2. प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के सभी प्रकार के अधिकार और स्वतंत्रा दी गई है. नस्ल, रंग, लिंग, भाषा, धर्म, राजनीतिक या अन्य विचार, राष्ट्रीयता या समाजिक उत्पत्ति, संपत्ति, जन्म आदि जैसी बातों पर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता है.
3. प्रत्येक व्यक्ति को जीवन, आज़ादी और सुरक्षा का अधिकार है.
4. ग़ुलामी या दासता से आज़ादी का अधिकार.
5. यातना, प्रताड़ना या क्रूरता से आज़ादी का अधिकार.
6. क़ानून के सामने समानता का अधिकार.
7. क़ानून के सामने सभी को समान संरक्षण का अधिकार.
8. अपने बचाव में इंसाफ़ के लिए अदालत का दरवाज़ा खटखटाने का अधिकार.
9. मनमाने ढंग से की गई गिरफ़्तारी, हिरासत में रखने या निर्वासन से आज़ादी का अधिकार.
10. किसी स्वतंत्र आदालत के ज़रिए निष्पक्ष सार्वजनिक सुनवाई का अधिकार.
11. जबतक अदालत दोषी क़रार नहीं दे देती उस वक़्त तक निर्दोष होने का अधिकार.
12. घर, परिवार और पत्राचार में निजता का अधिकार.
13. अपने देश में भ्रमण और किसी दूसेर देश में आने-जाने का अधिकार.
14. किसी दूसरे देश में राजनितिक शरण मांगने का अधिकार.
15. राष्ट्रीयता का अधिकार.
16. शादी करने और परिवार बढ़ाने का अधिकार और शादी के बाद पुरुष और महिला का समानता का अधिकार.
17. संपत्ति का अधिकार.
18. विचार, विवेक और किसी भी धर्म को अपनाने की स्वतंत्रता का अधिकार.
19. विचारों की अभिव्यक्ति और जानकारी हासिल करने का अधिकार.
20. संगठन बनाने और सभा करने का अधिकार.
21. सरकार बनाने की गतिविधियों में हिस्सा लेने और सरकार चुनने का अधिकार.
22. सामाजिक सुरक्षा का अधिकार और आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों की प्राप्ति का अधिकार.
23. काम करने का अधिकार, समान काम पर समान भुगतान का अधिकार और ट्रेड यूनियन में शामिल होने और बनाने का अधिकार.
24. काम करने की मुनासिब अवधि और सवैतिनक छुट्टियों का अधिकार.
25. भोजन, आवास, कपड़े, चिकित्सीय देखभाल और सामाजिक सुरक्षा सहित अच्छे जीवन स्तर के साथ स्वयं और परिवार के जीने का अधिकार.
26. शिक्षा का अधिकार. प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य हो.
27. सांस्कृतिक कार्यक्रमों में शामिल होने और बौद्धिक संपदा के संरक्षण का अधिकार.
28. हर व्यक्ति को एक ऐसी सामाजिक और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का अधिकार है जो यह सुनिश्चित करे कि इस घोषणापत्र का पालन हो पाए.
29. प्रत्येक व्यक्ति समुदाय के प्रति जवाबदेह है जोकि लोकतांत्रिक समाज के लिए ज़रूरी हैं.
30. इस घोषणापत्र में शामिल किसी भी बात की ऐसी व्याख्या न हो जिससे यह आभास मिले कि कोई राष्ट्र, व्यक्ति या गुट किसी ऐसी गतिविधि में शामिल हो सकता है जिससे किसी की स्वतंत्रता या अधिकारों का हनन हो.
इस घोषणापत्र पर भारत सहित कई अन्य देशों ने हस्ताक्षर किए हैं.

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