मंगलवार, 31 अक्तूबर 2017

नेहरू की नज़र में देशरत्न राजेन्द्र प्रसाद राष्ट्रपति के योग्य नहीं थे

आजादी के बाद देश को पहला राष्ट्रपति देने के लिए सिवान आज जो गर्व का अनुभव करता है, इसका पूरा श्रेय सरदार बल्लभ भाई पटेल को जाता है। पं. जवाहरलाल नेहरू ने तो ठान लिया था कि जैसे भी डॉ. राजेंद्र प्रसाद को राष्ट्रपति नहीं बनने देना है लेकिन बल्लभ भाई पटेल को ऐसे ही सरदार की उपाधि नहीं मिली। वे इतने असरदार थे कि पं. नेहरू की इच्छा सिवान की धरती पर जन्मे, यहां की मिट्टी में लोट-पोटकर बड़े हुए राजेंद्र बाबू को राष्ट्रपति बनवाकर ही दम लिया।
जीरादेई निवासी बच्चा ¨सह तथा जेपी सेनानी महात्मा भाई ने बताया कि राजेंद्र बाबू को जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रपति नहीं बनाना चाहते थे। जब औपबंधिक राष्ट्रपति नियुक्त करने की बात चल रही थी, तब नेहरू ने सी राजगोपालाचारी का नाम प्रस्तावित कर दिया था, जिसका अनुमोदन खुद डॉ.राजेंद्र प्रसाद करने के लिए उठ गए थे लेकिन सरदार पटेल द्वारा डांटकर बैठाने के बाद राजेंद्र बाबू चुप हो गए। सभा को समाप्त कर दिया गया। राजेंद्र बाबू जीरादेई चले आए। उधर पटेल जी ने देश भर के सभी बड़े नेताओं का हस्ताक्षर राजेंद्र बाबू को राष्ट्रपति बनाए जाने के पक्ष में कराया। 20 दिनों तक यह काम होता रहा। फिर राजेंद्र बाबू को खोजते-खोजते दिल्ली से अनुग्रह बाबू के साथ कुछ लोग जीरादेई आए और उनको मनाकर दिल्ली ले गए, जहां पर 26 जनवरी 1950 को उन्हें औपबंधिक राष्ट्रपति बनाया गया। महात्मा भाई बताते हैं कि उनकी माता जी भी देशरत्न के राष्ट्रपति बनने की कहानी बताती रही हैं। मां ने कहा था कि राजेंद्र बाबू को लेने के लिए दिल्ली से जो लोग आए थे, उनमें सरदार पटेल जरूर रहे होंगे। क्योंकि उस समय गांव में भी इसकी चर्चा खूब होती थी। लोग बताते थे कि जब तक सरदार पटेल लेने नहीं आएंगे, तब तक राजेंद्र बाबू दिल्ली नहीं जाएंगे। महात्मा भाई ने बताया कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद को राष्ट्रपति बनने से रोकने के लिए पं. नेहरू ने झूठ तक का सहारा लिया था। नेहरू ने 10 सितंबर 1949 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद को पत्र लिखकर कहा कि उन्होंने (नेहरू) और सरदार पटेल ने फैसला किया है कि सी. राजगोपालाचारी को भारत का पहला राष्ट्रपति बनाना सबसे बेहतर होगा। नेहरू ने जिस तरह से यह पत्र लिखा था, उससे डॉ.राजेंद्र प्रसाद को घोर कष्ट हुआ और उन्होंने पत्र की एक प्रति सरदार पटेल को भिजवाई। वे उस वक्त मुंबई में थे। कहते हैं कि सरदार पटेल उस पत्र को पढ़ कर सन्न थे, क्योंकि उनकी इस बारे में नेहरू से कोई चर्चा ही नहीं हुई थी। इसके बाद डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 11 सितंबर 1949 को नेहरू को पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि पार्टी में उनकी जो स्थिति रही है, उसे देखते हुए वे बेहतर व्यवहार के पात्र हैं। नेहरू को जब यह पत्र मिला तो उन्हें लगा कि उनका झूठ पकड़ा गया। अपनी फजीहत कराने के बदले उन्होंने अपनी गलती स्वीकार करने का निर्णय लिया।
जामापुर निवासी अति बुजुर्ग बांके बिहारी ¨सह ने राजेंद्र बाबू के राष्ट्रपति बनने के घटनाक्रम को अपनी डायरी में अंकित किया है। डायरी के पन्नों को पलटते हुए उन्होंने बताया कि सरदार पटेल ने पं. नेहरू को खुली चुनौती दी थी कि कार्यसमिति की बैठक में प्रस्ताव रखा जाए, जिसके पक्ष में ज्यादा समर्थक होंगे, उसे राष्ट्रपति बनाया जाएगा। नेहरू जानते थे कि कार्यसमिति के तीन चौथाई सदस्य डॉ. राजेंद्र प्रसाद के पक्ष में हैं तो उन्होंने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी।

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