बुधवार, 2 दिसंबर 2015

किस्सा-ए-ईमानदारी

लेखक :-शिवेंदु राय 
प्रधानमंत्री मोदी अगर ईमानदार हैं तो उनसे कैसे निबटा जाए, यह आजकल की सबसे ज्वलंत समस्या है | तथाकथित राजनीति विज्ञान के विद्वान इस दिशा में पोथियाँ तैयार करने में लगे हैं | सभी राजनीतिक पार्टियों के सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि मोदी की ईमानदारी अब विकराल रूप ले चुकी है |  इसलिए यह आवश्यक हो गया है कि सभी पार्टियाँ इस सामयिक समस्या पर मिल बैठ कर विचार करे | ईमानदारी के विरुद्ध मैं भी चिंतन करने को तैयार हूँ | ये जानते हुये भी कि चिन्तन का विषय मैंने नहीं निर्धारित किया है, मेरे अपने फायदे या नुकसान से जुड़ा मसला नहीं है |
पहली कड़ी में आदत के विरुद्ध कजरौटे से दुश्मनी कैसे संभव है भाई | आज तक काजल की कोठरी में बैठने की आदत थी, अब काजल से परहेज हजम कैसे होगा | अगर मैं कहूँ कि प्रधानमंत्री अगर ईमानदारी के संत-ब्रांड है तो उनके विरोधी, चेलों की कला के बारे में लिखा गया चालीसा शुरू कर देंगे | और उनके चेले उस ईमानदारी को लछेदार शब्दों में बेवजह प्रतिभा का परिचय देते हुए नृत्य करने लगेंगे | जिसकी कोई जरुरत नहीं थी | अब ईमानदारी गई तेल लेने चर्चा शुरू होगी नृत्य पर |
दूसरी कड़ी नृत्य की है, जिसमें सभी पार्टीयों के नेता नृत्य का विश्लेषण करने के साथ, नृत्य की नयी कला का विकास करने का दावा ठोक देंगे | इस नृत्य के विकास से जनता को क्या मिला, ये लगातार पार्टी के प्रवक्ता लोग स्थापित करने में लग जाते हैं, जनता को विकसित नृत्य कब्ज की तरह दे कर ही मानते हैं |
तीसरी कड़ी में सत्ता पक्ष भारतीय सनातन संस्कृति की दुहायी दे कर नृत्य विकास के कई बिन्दुओं पर आपत्ति दर्ज करते हैं | आपत्ति तो बनती है , देश की जनता को चूतिया बनाने का सबसे आसान तरीका है भारतीय संस्कृति की दुहायी देना | व्यक्तिगत आजादी के नाम पर जैसे कम्युनिस्टों द्वारा जिम्मेदारिओं से बचा जाता रहा है | ठीक वैसे ही संस्कृतिनिष्ठ पार्टीयां भारतीय सभ्यता को लेकर घडियाली आंसू बहाती रहती है | यह मौसमी फसल है कभी-कभी ये लोग बे-मौसम भी फसल लगा लेते हैं |
चौथी कड़ी में अगर फसल अच्छी हुयी तो ईमानदार मोदी को ‘पूजीपतियों का दलाल’ वाला पुराना ठप्पा कम्युनिस्टों द्वारा लगा दिया जायेगा | कुछ चिरकुट पार्टियाँ ‘विदेशी हाथ’ वाला फ़ॉर्मूला फिट करने में लगी रहती है | सत्ता के ख़िलाफ़ आंदोलन हो तो सरकार या सत्ता द्वारा दिया जाने वाला ‘विदेशी फंडिंग’ वाला फ़ॉर्मूला सबसे ज्यादा हिट रहता है | और किसी पश्चिम देश ने गलती से भी तारीफ कर दी तो कम्युनिस्टों का ‘पूजीपतियों की दलाल है ये सरकार’ ये फ़ॉर्मूला सदाबहार होता है | ये सब फोर्मेट आज़ादी समय से ही चले आ रहे हैं |

पांचवी और अंतिम कड़ी में फोर्मेट और फ़ॉर्मूले की व्याख्या की जायेगी | जिसमें आरक्षण, संघ, कॉमुनिस्ट जीवन- शैली, गाँधी, अम्बेडकर, नेहरू, जातिवाद आदि पर चर्चा होगी | सबसे पहले आरक्षण की समीक्षा की जाएगी क्यूँ कि संघ चाहता है | वैसे समीक्षा के तरीके साहित्य वाले नहीं होंगे | इस विषय पर सभी पार्टिओं की ईमानदारी बिना रीढ़ वाली होगी | क्यूँ कि सत्ता सुख किसे नहीं भाता भाई | एक ईमानदारी जो रीढ़ के साथ खड़ी है उसके सामने संघ और अम्बेडकर को खड़ा किया जायेगा | सवाल कुछ इस तरह के होंगे, संघ में अभी तक कोई दलित सरसंघचालक क्यूँ नहीं बना | संध दलित विरोधी है | अम्बेडकर को संघ कैसे हथिया सकता है | आज कल हथियाने की होड़ लगी है इसमें कौन कितनी तेज़ी से हथिया रहा है | ये समय समय पर समझने और देखने का विषय है, खैर | संघ के विषय में कॉमुनिस्ट भी कूद पड़ते हैं लेकिन बेचारे पकड़े जाते हैं क्यूँ कि पोलितब्यूरों में भी तो अभी तक कोई दलित शामिल नहीं हुआ है | कॉमुनिस्ट लोग इस बात पर अड़े है ईमानदारी हम चलने नहीं देंगे | बेईमान भी नहीं होने देंगे | कदम कदम पर टंगड़ी मरेंगे | चाहे हमारी टंगड़ी ही क्यूँ न टूट जाये | बयान देंगे हम ईमानदार के विरुद्ध | रैलियां करेंगे | भाई किसी के साथ तो रहना होगा ईमानदारी या बेईमानी | खैर, गाँधी जी, अम्बेडकर जी आप लोग नाराज़ नहीं होना, तफरी में आप लोगों पर भी चिन्ता करने वाली बात बोल गया | 

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