हम अपने ही लोगों के खिलाफ युद्व नहीं छेड़ सकते। यह बात केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने नक्सलियों के लिए कही थी। परंतु,आज जब नक्सलियों ने अबतक के सबसे बड़े नरसंहार को अंजाम दिया,जिसमें 73 केंद्रीय सुरक्षा बल के जवान शहीद हो गये।
चिदंबरम ने इस घटना को आश्चर्यजनक और दुखद बताया।उन्होंने यह भी कहा कि नक्सलियों के इस खूनी खेल ने माओवादियों की निरदयता और उनकी बढ़ी हुई क्षमता को दरशाती है। नक्सलियों ने सरकार के ऑपरेशन ग्रीन हंट को एक नहीं दो नहीं तीन बार झटका दिया है।15 फरवरी को नक्सलियों ने बंगाल के मिदनापोर जिले में ईस्टर्न राइफल्स के 24 जवानों को मौत के घाट उतार दिया था।। अभी दो दिन पहले ही,नक्सलियों ने उड़ीसा के कोरापुट जिले में 11 सुरक्षा कर्मियों को लैंडमाइन धमाके में मार गिराया था। और आज दंतेवाड़ा जिले के मुकराना के जंगल में घात लगाकर किये गये हमले में 73 सीआरपीएफ जवानों के साथ खून की होली खेली है।यह हमला केंद्र सरकार के नक्सलियों के प्रति रवैये पर सवालिया निशान उठाते हैं। साथ ही साथ ऑपरेशन ग्रीन हंट की पोल भी खोलता है। और कितनी जानों के बाद यह सिलसिला थमेगा। बहुत हो गया। अब वक्त आ गया है कुछ कडे कदम उठाने का। वरना इस समस्या का हल निकले वाला नहीं है। जो मारे गये है वो भी हमारे अपने ही थे।देश के छह जिलों में माओवादियों ने अपनी पैठ बना ली है। आंध्र प्रदेश व महाराष्ट्र को छोड़कर अन्य जगाहों पर बिहार,झारखंड,दक्षिण बंगाल और उड़ीसा में तो उनकी समानांतर सरकार चल रही है। सिर्फ इतना कह देना ही नक्सली समस्या देश की आंतरिक सुरक्षा को खतरा है, काम नही चलेगा। सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक भारत के पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान नक्सलियों की मदद से देश में अस्थिरता पैदा करना चाहते हैं।
चीन और पाकिस्तान से ही उन्हें आर्थिक मदद और आधुनिक हथियार मुहैया कराये जा रहे हैं। स्थिति और भी बिगड़ जाये, इससे पहले नक्सलियों को भी आतंकियों की तरह कुचलना होगा। इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों को एकजुट होकर कोई मजबूत कदम उठाना होगा। समय आ गया कि सरकार आर्मी को नक्सलियों का सफाया करने का जिम्मे देदे। सरकार को अब जवाब देना होगा की नक्सलियों के प्रति उसके रवैये में क्या बदलाव आयेगा। केद्र सरकार और उनके काबिल गृहमंत्री पी चिदंबरम अपने नक्सली विरोधी अभियान में फिलहाल तो पूरी तरह से असफल रहे हैं। नक्सली क्षेत्रों में तैनात सुरक्षा कर्मियों में भी डर का माहौल है। उनके हौंसले को बढ़ाने के लिए,सरकार को माओवादियों के खिलाफ युद्व की घोषणा करनी ही होगी।
बाजारवाद की अंधी दौड़ ने समाज-जीवन के हर क्षेत्र को अपनी गिरफ्त में ले लिया है, खासकर, पत्रकारिता सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पत्रकारिता ने जन-जागरण में अहम भूमिका निभाई थी लेकिन आज यह जनसरोकारों की बजाय पूंजी व सत्ता का उपक्रम बनकर रह गई है। मीडिया दिन-प्रतिदिन जनता से दूर हो रही है। यह चिंता का विषय है। आज पूंजीवादी मीडिया के बरक्स वैकल्पिक मीडिया की जरूरत रेखांकित हो रही है, जो दबावों और प्रभावों से मुक्त हो। विचार पंचायत इसी दिशा में एक सक्रिय पहल है।
रविवार, 11 अप्रैल 2010
सरहद पार की शादियां आसान नहीं
भारतीय टेनिस स्टार सानिया मिर्जा और पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक की शादी को लेकर मचे बवाल ने सरहद पार होने वाली शादियों की सफलता पर फिर बहस छेड़ दी है।
अमूमन दो देशों के लोगों के बीच हुई शादियां समस्याओं से घिरी रहती हैं और अगर बात भारत-पाकिस्तान की आती है तो उसमें जटिलताओं की आशंका और बढ़ जाती है। सरहद पार रिश्तों में अक्सर लड़कियों को ही समझौते करने पड़ते हैं।भले ही समाज बदल गया है, लेकिन अगर बात शादी की आती है तो कहीं न कहीं सामाजिक दायरे अब भी आड़े आते हैं। दो देशों के बीच शादियों में बाद में कई जमीनी समस्याएं आती हैं।पहले भी कई बार भारत और पाकिस्तान के बीच की शादियां सुर्खियों में आई हैं, लेकिन हर बार वह समस्याओं के कारण ही आयी हैं। दोनों देशों के माहौल और समाज के नजरिए में जमीन-आसमान का अंतर है। ऐसे में भारत की लड़कियों और खास तौर पर सानिया मिर्जा जैसी खिलाड़ी को पाकिस्तान के कथित रूढ़िवादी माहौल में सामंजस्य बिठाने में खासी तकलीफ आ सकती है।
अमूमन दो देशों के लोगों के बीच हुई शादियां समस्याओं से घिरी रहती हैं और अगर बात भारत-पाकिस्तान की आती है तो उसमें जटिलताओं की आशंका और बढ़ जाती है। सरहद पार रिश्तों में अक्सर लड़कियों को ही समझौते करने पड़ते हैं।भले ही समाज बदल गया है, लेकिन अगर बात शादी की आती है तो कहीं न कहीं सामाजिक दायरे अब भी आड़े आते हैं। दो देशों के बीच शादियों में बाद में कई जमीनी समस्याएं आती हैं।पहले भी कई बार भारत और पाकिस्तान के बीच की शादियां सुर्खियों में आई हैं, लेकिन हर बार वह समस्याओं के कारण ही आयी हैं। दोनों देशों के माहौल और समाज के नजरिए में जमीन-आसमान का अंतर है। ऐसे में भारत की लड़कियों और खास तौर पर सानिया मिर्जा जैसी खिलाड़ी को पाकिस्तान के कथित रूढ़िवादी माहौल में सामंजस्य बिठाने में खासी तकलीफ आ सकती है।
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