सोमवार, 22 मार्च 2010

पत्रकारिता में चाटुकारिता .

पत्रकारिता में चाटुकारिता आज कल खूब हो रहा है । इसके पीछे कारन यह है की संपादको का नौसिखुआ होना । संपादक वही लोग हो रहे है जो पैसा लगा रहे है या राज नेताओ से अच्छे सम्बन्ध है । मैं केवल प्रिंट मीडिया की बात नहीं कर रहा हूँ मैं इलेक्ट्रोनिक या वेब मीडिया , सभी माध्यमो की बात कर रहा हूँ । आज कल पत्रकार .संपादक के चाटुकारिता पर ज्यादा धन दे रहे है । आपने काम पर कम । इसके पीछे कारन यह है की । उन्हें अपने काम का ज्ञान नहीं होना । प्रिंट मीडिया के लिए लिखते तो है । पर उन्हें रचना प्रक्रिया का क , ख , ग का पता नहीं है । तो क्यों नहीं चाटुकारिता करे । नौकरी जो करनी है , पर अगर अगर अच्छे पत्रकार हमारे समाज को चाहिए तो । चाटुकारिता पर लगाम कसना होगा । और संपादक उन्हें ही बनाया जाये जिन्हें पत्रकारिता का ज्ञान हो । और समाज के लिए कुछ करने का जज्बा हो .

ये विकास है या पतन ?......

किसी भी समाज की पहचान वहां के साहित्य और आसपास के माध्यमों की रंगत देखकर पहचाना जा सकता है। अकसर हम इस बात की चर्चा तो करते रहते हैं कि देश में हर क्षेत्र में गिरावट आ रही है। क्या नेता, क्या पत्रकार, क्या न्यायपालिका, क्या प्रशासन, व्यापारी और क्या .. कोई भी, सबका स्तर दिनोंदिन गिरता जा रहा है। अब सवाल ये है कि जिसे हम समाज की गिरावट मानकर चल रहे हैं कि उसे क्या सचमुच समाज गिरावट मान रहा है या ये पुराने-नए का ऐसा फर्क हो गया है कि नए के जीने के तरीके को पुराने लोग समाज की गिरावट मानकर खारिज कर रहे हों। पता नहीं हम तो पीढ़ी के लिहाज से न तो अतिआधुनिक में हैं न पुरातनपंथी। तो, सबसे ज्यादा भ्रमित भारत हम जैसे लोग ही हैं।

UTV Bindass चैनल पर एक शो आजकल आ रहा है इमोशनल अत्याचार। ये फिल्म DEV D के गाने कैसा तेरा जलवा ... कैसा तेरा प्यार .. तेरा इमोशनल अत्याचार। फिल्म में अभिनेता के इमोशनल अत्याचार में ढेर सारी लड़कियों के साथ संबंध थे तो, बिंदास के शो में लड़की या लड़का अपने प्रेमी की परीक्षा लेता है जिसमें अकसर लड़की का प्रेमी चैनल की हीरोइन के चक्कर में फंस ही जाता है। ये एक नमूना है। इसी चैनल की नई प्रोमो लाइन में एक लड़की कहती है कि बिंदास हूं इसका मतलब ये तो नहीं कि मैं सबके साथ सोने के लिए तैयार हूं। ऐसी ही लड़का कहता है कि मैं बिंदास हूं इसका मतलब ये नहीं कि मैं ड्रग्स लेता हूं।

सबसे ज्यादा सुना जाने वाले रेडियो स्टेशन का दावा करने वाला RED FM का स्लोगन है ये आप के जमाने का रेडियो स्टेशन है, बाप के जमाने का नहीं। आप के जमाने का रेडियो स्टेशन साबित करने के लिए गाने के बीच-बीच में रेडियो जॉकी सवाल पूछता रहता है कि क्या आपको लगता है कि रियलिटी शोज हमारी संस्कृति भ्रष्ट कर रहे हैं या फिर क्या आपको बड़े होकर डॉक्टर, इंजीनियर या वकील बनना है तो, काइंडली कट लीजिए क्योंकि, ये आज के जमाने का रेडियो स्टेशन है बाप के जमाने का नहीं। वैसे तो, ये सुनते वक्त बस बिंदास रेडियो जॉकी की चुहलबाजी या रेडियो स्टेशन की मस्ती भर लगती है लेकिन, थोड़ा ध्यान से सुनें तो, समझ में आता है कि ये सचमुच कैसे हंसते-गाते हमारी संस्कृति का बैंड बजा देते हैं।

RED FM पर गाने सुनते हुए मैं वैलेंटाइन डे के आसपास सफर कर रहा था। रास्ते में एक रेडियो डॉकी का नाम सुना तो, दंग रह गया। उसने चहकते हुए बताया मैं हूं हरामखोर अविनाश। वो, पूरे कार्यक्रम के दौरान लड़के-लड़कियों से अपनी हरामखोरी साबित करने को कह रहा था। और, हरामखोरी मैसेज करने के लिए नंबर भी बता रहा था साथ ही ये प्रलोभन भी कि अगर हरामखोरी जंची तो, वैलेंटइन डे पर वो, बेहतरीन हरामखोरी भेजने वाले लड़के या लड़की को स्टूडियो बुलाएगा। वैलेंटाइन डे के शो का नाम भी था लगी लव की। लव की लगती भी है ये पहली बार सुना।

विज्ञापन भी कुछ इसी तरह से बदलते जमाने के लड़के-लड़कियां तैयार कर रहे हैं। सुरीले जिंगल और प्रति सेकेंड प्लान के साथ मोबाइल बाजार में उतरा टाटा डोकोमो का विज्ञापन में एक लड़का-लड़की साथ बैठे हैं। लड़के की नजर एक दूसरी लड़की पर पड़ती है और वो, लड़की को बातों में फंसाकर दूसरी लड़की के साथ जरा मस्ती के चक्कर में उठता है जाते समय देखता है कि उसकी गर्लफ्रेंड ने दूसरा ब्वॉयफ्रेंड पकड़ लिया। थोड़ा सा वो, हतप्रभ दिखता है फिर मुस्कुराता है और नई गर्लफ्रेंड के साथ चल देता है। पीछे से टाटा डोकोमो का संदेश सुनाई देता है when everyday there is new plan then why take fix mobile plan. Tata docomo daily plan. ये नए जमाने का दर्शन हम जैसे लोगों को डरा रहा है। शायद हम पुरातनपंथी हो रहे हैं क्या पता नहीं।

क्या मैं महिला आरक्षण विरोधी हूँ ?

आखिरकार जैसी आशंका सबको थी वही हुआ और एक बार फिर मुश्किल बाधा दौड़ पार करने के बाद आम सहमति के नाम पर कांग्रेस ने महिला आरक्षण बिल की आसान बाधा दौड़ पूरी करने से इनकार कर दिया। ज्यादातर लोग यही कहेंगे कि ये तो होना ही था। लेकिन, क्यों। इसका जवाब ज्यादातर लोग यही देंगे कि कांग्रेस यही चाहती थी। लेकिन, क्या कांग्रेस और देश की सबसे ताकतवर महिला सोनिया गांधी भी यही चाहती थीं। जवाब कड़े तौर पर ना में हैं। वैसे तो, ज्यादातर टीवी चैनलों और अखबारों ने बिल के राज्यसभा में पास होने को सोनिया गांधी का निजी संकल्प बताया ही लेकिन, मुझे एक सांसद ने जब ये बताया कि प्रणव बाबू तो, बिल के खिलाफ थे। उन्होंने कहाकि सरकार चली जाएगी, बावजूद इसके सोनिया ने कहा- सरकार जाती है तो, जाए- बिल पास कराइए। फिर कौन क्या कहता और बिल राज्यसभा में पास हो गया। फिर बिल में अड़ंगा क्यों लग रहा है। सरकार को इस मसले पर बीजेपी, लेफ्ट का पूरा समर्थन है। लेकिन, दरअसल इसी में महिला आरक्षण के अंटकने की असली वजह छिपी है।

कांग्रेस और बीजेपी भले ही व्हिप जारी करके अपने सांसदों को महिला आरक्षण पर वोट डालने के लिए राजी कर लें, सच्चाई ये है कि कांग्रेस-बीजेपी दोनों के बहुतायत सांसद महिला आरक्षण के विरोधी हैं। इसीलिए लालू प्रसाद यादव के ये कहने पर कि 90 प्रतिशत कांग्रेसी सांसद कह रहे हैं कि महिला आरक्षण डेथ वारंट है, इससे बचा लीजिए तो, भी कांग्रेस की ओर से इसका कोई कड़ा प्रतिकार नहीं आय़ा। ये तो हुई महिला आरक्षण के अंटकने की बात लेकिन, क्या महिला आरक्षण मिल जाए तो, लोकतंत्र सुधर जाएगा। संसद की 33 प्रतिशत सीटों के जरिए उनको उनका हक मिल जाएगा। जवाब ईमानदारी से खोजेंगे तो, साफ पता चलेगा कि जवाब ना में है।

महिला आरक्षण कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए उबले आलू की तरह है जो, न तो उगलते बन रहा है न निगलते। लेकिन, ये राष्ट्रीय पार्टियां हैं और इनके बड़े नेताओं को भरोसा है कि किसी न किसी सीट से वो तो, जीतकर संसद में पहुंच जाएंगे। डरे छोटे नेता जो, टिकट के लिए संघर्ष करते और अपनी जमीन बताने निपट जाते हैं उन्हें ये आरक्षण अपनी गर्दन पर रखी छुरी की तरह लग रहा है। और, सच्चाई भी यही है कि ये आरक्षण देश में लोकतंत्र का इतिहास बदलेगा लेकिन, साथ में लोकतंत्र का मखौल बनाने का जरिया भी बन जाएगा।

अब सोचिए जरा महिला आरक्षण मतलब 100 में से 33 सीटों पर सिर्फ महिलाएं लड़ेंगी, पुरुषों को लड़ने का हक ही नहीं होगा। यानी प्रतिस्पर्द्धा से नेतृत्व निखरने की लोकतंत्र की पहली शर्त पर ही महिला आरक्षण चोट करेगा। जाहिर है महिलाओं के लिए आरक्षित लोकसभा सीट पर कोई पुरुष नेता नहीं बनना चाहेगा और वो, क्षेत्र के लिए चिंता बिल्कुल ही छोड़ देगा। और, चूंकि ये आरक्षण रोटेशनल आधार पर यानी एक बार ये लोकसभा तो, दूसरी बार बगल वाली लोकसभा को महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिया जाएगा। तो, जाहिर है जाने-अनजाने इन क्षेत्रों से स्वाभाविक नेतृत्व ही खत्म होता जाएगा। इस आरक्षण का फायदा उन सामंती परिवारों को आसानी से मिल जाएगा जो, राजनीतिक-सामाजिक-आर्थिक-अपराधिक तौर पर पहले से बेहद बलशाली भूमिका में हैं। होगा ये कि अपराधियों को खत्म करने की संभावना दिखाने वाला ये महिला आरक्षण, महिलाओं की आड़ में अपराध रक्षण का बड़ा हथियार बन जाएगा। ये दलिता, पिछड़े आरक्षण की तरह नहीं है। जरा सोचकर बताइए ना किस बाहुबली सवर्ण या फिर बाहुबली दलित-पिछड़े के घर की महिलाओं को उनका अधिकार न देने की ताकत सामान्य लोगों में होती है। किसी राजनीतिक तौर पर प्रभावशाली परिवार चाहे वो, जिस जाति का हो, उस परिवार की महिलाओं का हक भला कौन मार रहा है या मार सकता है।

मुझे चक दे इंडिया फिल्म का वो, दृश्य याद आ रहा है जिसमें महिला हॉकी टीम कड़े मुकाबले में पुरुषों से हार जाती है लेकिन, ऐसा जज्बा उनके दिलो दिमाग में घर कर जाता है कि वो, वर्ल्ड कप हासिल करके लौटती हैं। मेरा तर्क ये है कि अगर महिलाओं को सही मायनों में पुरुषों के बराबर हक देने की बात हो रही है तो, महिलाओं के लिए अलग कोना खोजकर उन्हें कमजोर ही बनाए रखने की और देश में नेतृत्व खत्म करने वाला ये बिल क्यों लाया जा रहा है।

तर्क ये आता है कि महिलाओं को आरक्षण मिलेगा तो, कम से कम 33 प्रतिशत सीटों पर महिलाएं तो, आएंगी। और, इससे लोकसभा का माहौल सुधरेगा। ये आरक्षण के बूते संसद में पहुंची महिलाएं कैसे माहौल सुधार पाएंगी। वो, भी ज्यादातर ऐसी होंगी जो, बमुश्किल ही अपनी ही पार्टी में मौजूद नेता पति की आज्ञा की अवहेलना कर सकेंगी। और, अगर महिलाओं को आरक्षण दिए बिना उनका हक नहीं मिलेगा ऐसी सोच है तो, पुरुषों के साथ मैदान में ताल ठोंककर सबको चित करने वाली भारतीय राजनीति में सबसे ताकतवर (महिला या पुरुष) सोनिया गांधी जैसा नेतृत्व आरक्षण से पैदा होने की उम्मीद हम कैसे पाल पाएंगे। भले ही सोनिया के नाम के आगे गांधी लगा हो लेकिन, जिस तरह विदेशी मूल की बहती विरोधी बयार के बीच इस महिला ने खुद को साबित किया है वो, दिखाता है कि नेतृत्व चाहे महिला का हो या पुरुष का बिना प्रतियोगी माहौल के बेहतर नहीं हो सकता है।

लोकसभा में भाजपा नेता सुषमा स्वराज और कम्युनिस्ट पार्टी की पहली महिला पोलित ब्यूरो सदस्य वृंदा करात ही भला किस महिला आरक्षण से इतनी प्रतिभा जुटा पातीं। किस पुरुष राजनेता में इतनी ताकत है कि वो मायावती, ममता बनर्जी, जयललिता को खारिज करने का साहस जुटा सके। महिलाएं लोकसभा-विधानसभा में चुनकर आएं समस्या इससे नहीं है। समस्या इससे है कि संसद-विधानसभा में पहुंचने का लॉलीपॉप देकर महिलाओं के लिए एक अलग कमजोर कोना तैयार कर दिया जाए। समस्या इससे है कि महिलाओं को उनका हक देने के परदे के पीछे हमेशा महिलाओं को पुरुषों से कमजोर साबित कर दिया जाए।

लालू-मुलायम के भले ही इसके विरोध में अपने दूसरे हित छिपे हों। लेकिन, मुलायम की ये बात ज्यादा दमदार लगती है कि पार्टियों को खुद से क्यों नहीं महिलाओं को टिकट देना चाहिए। चुनाव आयोग उनकी मान्यता समाप्त करने का डर भी उन्हें दिखा सकता है। टिकट के दंद फंद में महिलाएं न फंसें ये तो, फिर भी जायज माना जा सकता है चुनावी दौड़ में आधी आबादी पुरुषों को लड़ाई से ही बाहर कर दिया जाए ये तो, एक नई विसंगति पैदा करने की कोशिश है।

राजनीति में ही नहीं कॉरपोरेट और दूसरे क्षेत्रों में जिन महिलाओं ने बिना आरक्षण के अपना मुकाम बनाया है उनकी ताकत सब मानते हैं वरना तो, ज्यादातर बॉसेज की सेक्रेटरी का पद महिलाओं के लिए ही आरक्षित होता है। लेकिन, क्या वो महिला को उसका हक दिला पाता है। क्या वो, महिला सशक्तिकरण के दावे को मजबूत करता है। बिल्कुल नहीं। महिला सशक्तिकरण का दावा मजबूत होता है। पेप्सिको चेयरमैन इंदिरा नूई के कामों से, ICICI बैंक की CEO चंदा कोचर से, HSBC की नैना लाल किदवई से, पहली महिला IPS अधिकारी किरण बेदी को देखकर महिलाओं को मजबूती मिलती है। ये लिस्ट इतनी लंबी है कि किसी के लिए उसे एक जगह संजोना मुश्किल है।

इसलिए भारतीय राजनीति में महिला आरक्षण के लिए जरिए सामंती परंपरा को और मजबूत करने की कोशिश का विरोध होना चाहिए। भारतीय नेतृत्व को कमजोर करने की इस कोशिश का विरोध होना चाहिए। महिलाओं को पुरुषों की प्रतियोगिता से बचाकर उन्हें पुराने जमाने में ठेलने की इस कोशिश का विरोध होना चाहिए। राजनीति में महिलाओं को उनका हक देना ही है तो, कांग्रेस-बीजेपी अगले किसी भी चुनाव में 33 प्रतिशत क्या पचास प्रतिशत महिलाओं को टिकट देकर महिला सशक्तिकरण पर अपना भरोसा दिखा सकती हैं। किसी अपराधी, बाहुबली, धनपशु के खिलाफ किसी भी महिला को शायद ज्यादा लोगों का समर्थन मिल जाएगा। सोचिए क्या महिला आरक्षण देश में एक अजीब विसंगति की जमीन नहीं तैयार कर रहा है। इसलिए महिलाओं के हक के लिए महिला आरक्षण का विरोध कीजिए। क्योंकि, सच्चाई यही है कि अगर महिलाओं की सीट आरक्षित हुई तो, ये प्रभावशाली लोगों (राजनैतिक-आर्थिक-अपराधिक) के पूरे परिवार को आसानी से संसद और विधानसभा में पहुंचने में मदद करेगा।

शुक्रवार, 5 मार्च 2010

उठो ,जागो और आगे बढ़ो ........

मित्रो, मार्च आते ही परीक्षा का दौर शुरू होता है. बोर्ड की परीक्षाएं शुरू हो चुकी हैं. सभी विद्यार्थियों और उनके माता-पिता के लिए ये एक महत्वपूर्ण दिन होते हैं. मैं, देश के भविष्य, अपने उन सभी युवा मित्रों को जो कि कक्षा X और XII की परीक्षा में बैठेंगे उन्हें शुभकामनाएं देता हूँ. सभी उपलब्धियों की जड़ों में अथक परिश्रम, लगन और समर्पण होते है. जीवन की इस यात्रा में हमें मिली सभी सीखों का परीक्षण होता रहता है. इस मायने से हम सभी विद्यार्थी हैं. यहाँ मैं स्वामी विवेकानंद की कुछ पंक्ति quote करना चाहता हूँ: "उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक मत रुको." परीक्षाएं तो जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है. अपनी चिंताओं को पीछे छोड़; ज्ञान के लिए जुट जाओ परिणाम अपने आप आयेंगे. मैं success का अपना मूल मंत्र आपसे share करना चाहता हूँ: "Desire + stability = Resolution. Resolution + Hard work = Success". मुझे पूरा विश्वास है की आप सभी देश के उज्वल भविष्य के लिए अपना योगदान देने में सक्षम है. पुनः मेरी ओर से शुभकामनाएं.
शिवेन्दु राय

गुरुवार, 4 मार्च 2010

जय हो .........

जय हो । आप देश के लिए कुछ करना चाहते हैं तो हमारा साथ दे । और कुछ लिखे । देश के लिए नहीं तो अपने लिए हाय सही लिखे जरुर .........
देश को आगे ले जाना है,, इकोनामिक ग्रोथ होना चाहिये,,,
प्रणब दादा जी बतायें,, देश जनता से और जनता देश से होती है,,,
जनता भूखी रहेगी तो देश कैसे आगे बढ़ेगा,, किसकी ग्रोथ का बजट है???
यह महंगायी जो हम झेल रहे हैं वह भी पेट्रोल की कीमत 2रु. बढ़्नें से चालू हुयी थी ,,
आज बजट में फिर 2.65 रु. पेट्रोल पर बढ़ा दिये गये हैं,, अब कीमतें और बढ़ेंगी.. ...